Niyuddha History

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NIYUDDHA HISTORY

नियुद्ध का इतिहास

भारत की भूमि पर कई प्रकार की युद्ध कलाओं का जन्म हुआ है। उनमें से ही एक बिना शस्‍त्र के लडने की प्राचीन भारतीय युद्धकला  नियुद्ध  है। नियुद्ध कला मूल रूप से प्राचीन भारत की बिना किसी शस्‍त्र के लडने और आत्‍मरक्षा करने की कला है, जो कि बिना शस्त्रों के आत्मरक्षा के लिये घातक प्रहार कर शत्रु को घायल एवं धराशायी करने में समर्थ होती है।

दुसरे शब्‍दों में ऐसी विद्या जिसमें लडने और आत्‍मरक्षा करने के लिये केवल मानव शरीर के सभी छोर अर्थात हाथ, पैर, सिर और सम्‍पूण शरीर का उपयोग किया जाता है, फिर इन छोरों में कोई हथियार ही क्‍यों न हो।

इस प्राचीन भारतीय युद्धकला नियुद्ध का इतिहास कई हजारों वर्ष पुराना माना जाता है। नियुद्ध नाम की इस प्राचीन भारतीय युद्ध कला का उद्भव सतयुग में हुआ तथा इस कला के सृजनकर्ता भगवान श्री शिवजी को माना जाता है। कुछ विद्वान इसे प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप ‘आर्यावत’ के वैदिक सत्‍यकाल में भगवान श्री शिवजी द्वारा किए गए तांडव नृत्य से उत्पन्न 16 कलाओं में से एक मानते हैं।

यह कला भगवान श्री शिव के हठ योग से उत्पन्न हुई है, यह शाश्‍वत सत्य है, जि‍सके प्रमाण भारतीय धर्मग्रंथों में मिलते है। यह कला भगवान शिव के ताण्‍डव नृत्‍य से प्रकट हुई इस कारण वे इस कला के आदिगुरू (आदि नियुद्धाचार्य) माने जाते है। यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है कि भगवान शिव बुराई के विनाशकर्ता हैं, इसलिए उन्होंने ब्रह्मांड को विकसित करने और पाप का अंत करने के लिए तांडवनृत्य के माध्यम से इस कला को कई कलाओं के साथ उत्‍पन्‍न था, ताकि मृत्‍युलोक पर रहने वाले मनुष्य भी अपनी रक्षा कर सकें।  इस कला को आत्मरक्षा और समाज की रक्षा के लिए समर्पित करते हुए उन्होंने इसे मानव को प्रदान किया। साथ ही, भगवान शंकर ने पृथ्वी पर रहने वाले कई महान ऋषियों और योद्धाओं को कठिन साधना करने पर उन्हें लड़ने की कला दी और मानवता की भलाई के लिए इस कला का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध किया। प्राचीनतम काल में ऋषिमुनियों ने इस कला का गहन अध्‍ययन कर शिष्‍यों को अपने आश्रमों में शस्‍त्र विद्या के साथ-साथ बिना शस्‍त्रों के युद्ध करने की कला का भी प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया।

सामान्‍यजन आम जीवन में साधारण रूप से बिना किसी शस्‍त्र के ही विचरण करते है। ऐसी स्थिति में होने वाले किसी आक्रमण से अपने शरीर को ही हथियार बनाकर अपनी रक्षा करना नियुद्ध कला में सिखाया जाता है। नियुद्ध के माध्यम से हम आसानी से अपने अन्‍दर की सोई हुई समस्‍त शक्तियों को जागृत कर उनका उपयोग जीवन के कई हिस्‍सों में कर सकते है।

नियुद्ध प्राचीन वैदिक भारतीय विज्ञान है। इसका नामकरण सतयुग के समय महर्षि वशिष्‍ठ के काल में हुआ था। नियुद्धाचार्य श्री परशुराम ने त्रेता युग में इसे और अधिक समृद्ध बनाया। इसके बाद, इस नियुद्ध कला के आंशिक भाग कई अन्य नामों से प्रसिद्ध हुए जैसे बहू युद्ध, मल्लुद्ध, प्राणयुद्ध, वज्रमुष्टी आदि।

नियुद्ध कला में केवल मानव सिर, हाथ, पैर और शरीर का ही हथियार के रूप में उपयोग किया जाता है। एक तरह से यह कला आधुनिक मिश्रित मार्शल आर्ट का एक प्राचीन रूप है, जिसमें किसी प्रकार की कोई रोक नहीं है।

यह कला विभिन्न युगों के कई महान योद्धाओं के नाम से भी प्रसिद्ध हुई, जिन्होंने इसकी शैली को समृद्ध किया और इस कला को और अधिक शक्तिशाली और उपयोगी बनाया। जैसे हनुमंती के नाम पर हनुमानजी, जामवंत के नाम पर जम्बूवंती, जरासंघ। जरासंघी, भीमसेनी से वीर बलशाली भीम आदि के नाम से यह प्रसिद्ध हुआ।

नियुद्ध कला का वर्णन प्राचीन धर्मग्रंथों – शिवपुराण, दुर्गापुराण, रामायण, महाभारत आदि में भी मिलता है। माँ दुर्गा, माँ काली, भगवान् श्रीराम, लक्ष्मण, भारत, शत्रुघ्न, परशुराम, जामवंत, हनुमान, सुग्रीव, बाली, अंगद, भगवान् श्रीकृष्ण, बलराम, भीम, जरासंध, दुर्योधन, घटोत्कच और कई कौरव एवं पांडव भी महान नियोद्धा रहे है।

बिना हथियारों के लड़ी जाने वाली ये कला नियुद्ध को भारत के केरल प्रदेश में भगवान् परशुराम जी द्वारा रचित एक कला के साथ भी जोड़ा जाता है जिसे कि कलारीपयट्टू के नाम से जाना जाता है।

बोद्धधर्म के अनुयायियों द्वारा धर्म के प्रचार हेतु की जाने वाली लम्‍बी यात्राओं के दौरान आततायियों से अपने धर्मग्रन्‍थों को बचाने के लिये नियुद्ध कला का गहन अध्‍ययन किया। 

तत्‍समय बौद्ध भिक्षुओं के माध्‍यम से इस कला के कई अंश भारत के बाहर विभिन्न देशों में गये। कालान्‍तर में, भारत के लोगों द्वारा भगवान शिव द्वारा दी गई इस नियुद्ध कला को भुला दिया। वे अपने ऋषियों, योगियों और अन्य गुरुओं द्वारा विकसित इस कला को विस्‍मृत कर दिया और उसे संरक्षित नहीं रख सके।

किन्‍तु विभिन्न देशों द्वारा बौद्ध धर्मावलंबियों के माध्‍यम से उनके यहां आने वाले नियुद्ध कला के विभिन्‍न अंशों को सहेजा गया।  और नियुद्ध कला के विभिन्‍न अंशों को अपने स्‍वयं के संस्‍कारों में बाध कर अपनी भाषा के नामों से स्थापित किया। उन्‍होने नियुद्ध कला को न केवल शोर्यकलाओं/ सामरिक कलाओं के रूप में आत्‍मसात किया, बल्कि उसे खेल का स्‍वरूप प्रदान कर उच्‍च स्‍तरीय नियुद्ध कलाओं (मार्शल आर्ट) के रूप में स्‍थापित किया और उनके नाम से अपने देशों को गौरवान्वित भी किया। कुंगफू (चीन), जूडो, कराते, सेवते, अईकिडो, जुकाडो आदि (जापान), ताईक्‍वाण्‍डो (कोरिया) और भी अन्‍य मार्शल आर्ट खेल इसके गौरवान्वित उदाहरण है। और वर्तमान में भी इसके कई अंश और अधिक परिष्‍कृत होकर किक बाक्सिंग, मिक्‍स मार्शल आर्ट के रूप में स्थापित हो रहे है।

नियुद्ध की कला का उद्देश्य मानव जाति को हिंसक हुए बिना आध्यात्मिक पक्ष से जोड़ना है, ताकि उसकी पूर्ण शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आंतरिक शक्तियों का विकास हो और एक अनुशासित और जिम्मेदार मानव बन सके।

विदेशों में इस कला को शारीरिक व्‍यायाम, आत्‍मरक्षा तथा सामरिक कला के रूप में सीमित रखा गया है, लेकिन भारत में नियुद्ध कला को लडने की कला के साथ–साथ मानसिक एवं शारीरिक विकास के साथ आध्‍यात्मिक पक्ष से जोडा गया है।

…. निरन्‍तर

Niyuddha’s History

Many types of martial arts have been born on the land of India. One of them is the ancient Indian martial art of fighting without arms means  ‘Niyuddha’. The art of “Niyuddha” is basically the art of fighting without any weapons and self-defense in ancient India, which is capable of injuring and destroying the enemy by making deadly strikes for self-defense without weapons.

In other words, such a discipline in which only all the ends of the human body i.e. arms, legs, head and the whole body are used for fighting and self-defense, then why should there be no weapons in these ends.

The history of this ancient Indian martial art is believed to be many thousands of years old. This ancient Indian martial art named Niyuddha originated in Satyuga and the creator of this art is believed to be Lord Shiva. Some scholars consider it to be one of the 16 arts originated from the Tandava dance performed by Lord Shiva in the Vedic Satya period of the ancient Indian subcontinent ‘Aryavat’.

This art has originated from his hatha yoga, it is an eternal truth, the evidence of which is found in Indian scriptures. This art was manifested by the Tandava dance of Lord Shiva, due to which he is considered as the Adi Guru (Adi Niyudhacharya) of this art.

It is universally accepted that Lord Shiva is the destroyer of evil, so he had created this art with many arts through Tandavanritya to develop the universe and put an end to sin, so that the humans living on the mortals (Mrityu Lok) can also protect themselves. Dedicating this art to self-defense and protection of society, he gave it to human beings. At the same time, Lord Shiva, on the hard work of many great sages and warriors living on earth, gave them the art of fighting and committed them to use this art for the betterment of humanity.

In ancient times, sages and sages, after studying this art deeply, started training the disciples in their ashrams in the art of weaponry as well as the art of fighting without weapons. Ordinary people walk in ordinary life without any weapons. It is taught in the art of Niyuddha to protect yourself by making one’s own body a weapon from any attack in such a situation. Through Niyuddha, we can easily awaken all the sleeping powers within us and use them in many parts of life.

Niyuddha is ancient Vedic Indian science. It was named in the time of Maharishi Vashishta during the time of Satyuga. Niyudhacharya Shri Parashuram made it more prosperous in Tretayuga. After this, this Niyuddha art’s partial parts became famous by various other names like Bahu Yuddha, Mallyuddha, Pranayuddha, Vajramushti etc. In Niyuddha art, only the human head, hands, feet and body are used as weapons. In a way, this art is an ancient form of modern mixed martial arts, in which there is no restriction of any kind.

This art also became famous in the name of many great warriors of different eras, who enriched its style and made this art more powerful and useful. Like Hanumanji in the name of Hanumanti, Jambuvanti in the name of Jamwant, Jarasangha. From Jarasanghi, Bhimseni in the name of Veer Balshali Bhima etc.  it was famoused.

The description of Niyuddha art is also found in ancient scriptures – Shivpuran, Durgapuran, Ramayana, Mahabharata etc. Mother Durga, Mother Kali, Lord Shri Ram, Lakshmana, Bharat, Shatrughan, Parashurama, Jamwant, Hanuman, Sugriva, Bali, Angad, Lord Shri Krishna, Balarama, Bhima, Jarasandha, Duryodhana, Ghatotkacha and many Kauravas and Pandavas were also great warriors. This art of fighting without weapons, Niyuddha is also associated with an art composed by Lord Parashurama in Kerala state of India, which is known as Kalaripayattu.

During the long journeys made by the followers of Buddhism for the propagation of religion, he studied the art of Niyuddha deeply to save his scriptures from the terrorists. At that time, many parts of this art went to different countries outside India through Buddhist monks.

Later on, the people of India forgot this Niyuddha art given by Lord Shiva. They forgot this art developed by their rishis, yogis and other gurus and could not preserve it.

But different parts of Niyuddha Art were saved by different countries through the Boddha monks who came to them. And by inhibiting the various parts of the Niyuddha art in their own rites, established them in the names of their own language. They not only assimilated Niyuddha art in the form of martial arts, but also established them as high-level martial arts by giving them the form of sports and also made their countries proud in their name.  Kungfu (China), Judo, Karate, Sewate, Aikido, Jukado etc. (Japan), Taekwondo (Korea) and many other martial arts sports are proud examples of this. And even at present, many parts of it are getting more sophisticated and established as kick boxing, mixed martial arts.

The aim of the art of Niyuddha is to connect mankind with the spiritual side without becoming violent, so that its full physical, intellectual, social and spiritual inner powers develop and become a disciplined and responsible human. In foreign countries, this art is confined only to the form of physical exercise, self-defense and tactical art, but in India, the art of Niyuddha has been associated with the art of fighting as well as mental and physical development and spiritual side.                                      ….. Continue

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About Us

Niyuddha is an ancient and true Indian Martial art. It was born in Satyug by Holy God. Which has been developed most effective method of Weaponless self-defense.

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